जय बाबा जलाधारी मंदिर पालमपुर

पालमपुर उपमंडल में सुलाह से करीब 21 किलोमीटर दूरी पर स्थित दूसरे अमरनाथ के नाम प्रसिद्ध बाबा जलाधारी मंदिर क्यारवां में श्रावण माह के हर सोमवार को भारी संख्या में श्रद्धालु शिव भगवान की पूजा अर्चना कर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।
जय बाबा जलाधारी
सदियों पूर्व यहां पर बाबा दूधाधारी महादेव प्रकट हुए थे। यहां पर विशाल गुफा प्रकृति की अद्भुत देन है। दंतकथा के अनुसार
युवक श्यामू बांसुरी की मीठी धुनों से हर किसी का मन मोह लेता था। एक दिन वह इस गुफा के पास अपने पशुओं को चरा रहा था कि तभी उसकी नजर एक सैहल नामक जानवर पर पड़ी। श्यामू उसे पकड़ने के लिए गुफा के अंदर चला गया, पर बाहर निकलने का रास्ता भूल गया। गांव के लोग ढूंढ कर थक हार गए तो उसे मृत समझ बैठे।

 चार वर्ष बाद जब परिजन श्यामू के चतुर्थ वार्षिक श्राद्ध की तैयारी में लगे थे, तभी अचानक बांसुरी की वही धुन सुनाई दी। गांव वाले गुफा के ऊपर भीम टिल्ले पर पहुंचे तो एक साधु बांसुरी बजा रहा था। जब उस बांसुरी वाले ने अपनी पहचान बताई तो गांव वाले उसे घर ले आए। श्यामू ने गांव वालों को बताया कि एक दिन वह सैहल के पीछे गुफा में चला गया।

 जहां पर एक महात्मा ने उसे विभूति खाने को दी, जिससे उसकी भूख खत्म हो गई तथा वहां रहने में उसे बड़ा आनंद मिलने लगा। एक दिन महात्मा ने श्यामू से उसकी पिछली जिंदगी बारे पूछा तो उसे घर की याद आई व महात्मा ने उससे कहा कि जिस रास्ते से तुम यहां आए थे, वहां पर मैं शिवलिंग के रूप में प्रकट होऊंगा। मेरे ऊपर दूध की धारा टपकेगी, मेरी सवारी बैल होगी, जो मूर्तिवत वहां साथ ही प्रकट होंगे, जो भी श्रद्धापूर्वक बैलों की पूजा कर शिवलिंग के दर्शन करेगा वह मनवांछित फल पाएगा।
जय बाबा जलाधारी
जय बाबा जलाधारी

 साथ ही यह भी हिदायत दी कि दूध की जो धारा शिवलिंग पर गिरेगी उसे कोई अपवित्र न करे। कोई भी खीर या अन्य पकवान न बनाए, ऐसा करने से दूध पानी में बदल जाएगा। श्यामू को तभी आशीर्वाद देकर महात्मा ने गुफा से बाहर भेज दिया। ठीक दस दिनों बाद गांव के लोग श्यामू के साथ गुफा में आए तो वहां पर सब कुछ उसके बताए अनुसार घटित हो चुका था।

 श्यामू गुफा में रहने लगा व पूजा-अर्चना कर भक्ति करने लगा काफी समय बाद श्यामू ने वहीं पर मोक्ष पाया। दिनोंदिन बढ़ रही लोगों की श्रद्धा से यहां पर भक्तों की भीड़ रहने लगी। एक दिन कोई मुसाफिर यहां पर ठहरे जिन्होंने दूध की बहती धारा से खीर बनाकर खा ली और तब से दूध के स्थान पर जल बहने लगा। इस प्रकार यह स्थान तबसे दूधाधारी की जगह जलाधारी के नाम से जाना जाने लगा।

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