हिमाचल प्रदेश में अनेकों धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम (दियोट सिद्ध) प्रसिद्ध सिद्ध पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेक देवी-देवताओं के अलावा ऐतिहासिक संदर्भ में 9 नाथ और 84 सिद्ध भी हुए हैं। ये सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में विचरण करते हैं।
इस प्रकार 9 नाथ और 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम भी आता है। इनके बारे में प्रसिद्ध है इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। सत्युग में यह स्कंद, त्रेतायुग में कौल और द्वापर में महाकौल के नाम से जाने गए। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का ही अंश अवतार माना जाता है। कुछ भक्त बाबा जी को 9 नाथ 84 सिद्धों की परम्परा में आने वाले बालयोगी (बाल रूप) के रूप में पूजते हैं।
श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी बाल्यावस्था (अल्पायु) में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुंचे थे। शाहतलाई में ही रहने वाली माई रत्नो नामक नि:संतान महिला ने बाबा बालक नाथ जी को अपना धर्म का पुत्र बनाया और इन्होंने 12 साल माता रत्नो की गऊएं चराईं। एक दिन माता रत्नो के ताना मारने पर बाबा बालक नाथ जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं।
इस घटना की चर्चा आसपास के क्षेत्र में हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ को जब पता चला कि एक बालक शाहतलाई में बहुत शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु इनके इंकार करने पर गोरख नाथ जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने बाबा जी को जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा बालक नाथ जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पहुंच गए जहां आजकल बाबा जी की सुंदर गुफा अधिष्ठित है और बाबा जी का मंदिर भी बना हुआ है।
मंदिर के नीचे सुंदर बाजार भी सजे हुए हैं। गुफा की ओर जाती सुंदर सीढिय़ां भी आकर्षित करती हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बाबा जी का अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। बाबा जी का तेजस्थल होने के कारण यह भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है।
धूणे के पास ही बाबा जी का विशाल चिमटा है। बाबा जी की गुफा के निकट ही संगत के बैठने के लिए 2 बड़े हाल हैं। गुफा पर महिलाओं का जाना वर्जित है। गुफा के सामने एक बहुत बड़ी गैलरी है जहां से महिलाएं पवित्र गुफा के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। धूणे की भभूति और धूप भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलती है।
बताया जाता है कि जब बाबा जी ने गुफा के अंदर समाधि ली तो वहां एक दियोट (दीपक) जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोट सिद्ध के नाम से भी जानते हैं। बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थल गुफा है जो प्राकृतिक है।
गुफा के पीछे पहाड़ी पर शिखर शैली का नया मंदिर बना हुआ है। वहां भगवान शिव का मंदिर भी है। यहां करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है जिसे भक्तों की सुविधाओं के लिए लगातार खर्च किया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी की गुफा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। 14 मार्च संक्रांति वाले दिन यहां वार्षिक मेला (चाला) प्रारंभ हो रहा है जहां लाखों की संख्या में भक्त लोग आकर बाबा बालक नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
https://www.facebook.com/JaiSidhBabaBalakNath
इस प्रकार 9 नाथ और 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम भी आता है। इनके बारे में प्रसिद्ध है इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। सत्युग में यह स्कंद, त्रेतायुग में कौल और द्वापर में महाकौल के नाम से जाने गए। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का ही अंश अवतार माना जाता है। कुछ भक्त बाबा जी को 9 नाथ 84 सिद्धों की परम्परा में आने वाले बालयोगी (बाल रूप) के रूप में पूजते हैं।
श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी बाल्यावस्था (अल्पायु) में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुंचे थे। शाहतलाई में ही रहने वाली माई रत्नो नामक नि:संतान महिला ने बाबा बालक नाथ जी को अपना धर्म का पुत्र बनाया और इन्होंने 12 साल माता रत्नो की गऊएं चराईं। एक दिन माता रत्नो के ताना मारने पर बाबा बालक नाथ जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं।
इस घटना की चर्चा आसपास के क्षेत्र में हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ को जब पता चला कि एक बालक शाहतलाई में बहुत शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु इनके इंकार करने पर गोरख नाथ जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने बाबा जी को जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा बालक नाथ जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पहुंच गए जहां आजकल बाबा जी की सुंदर गुफा अधिष्ठित है और बाबा जी का मंदिर भी बना हुआ है।
मंदिर के नीचे सुंदर बाजार भी सजे हुए हैं। गुफा की ओर जाती सुंदर सीढिय़ां भी आकर्षित करती हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बाबा जी का अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। बाबा जी का तेजस्थल होने के कारण यह भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है।
धूणे के पास ही बाबा जी का विशाल चिमटा है। बाबा जी की गुफा के निकट ही संगत के बैठने के लिए 2 बड़े हाल हैं। गुफा पर महिलाओं का जाना वर्जित है। गुफा के सामने एक बहुत बड़ी गैलरी है जहां से महिलाएं पवित्र गुफा के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। धूणे की भभूति और धूप भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलती है।
बताया जाता है कि जब बाबा जी ने गुफा के अंदर समाधि ली तो वहां एक दियोट (दीपक) जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोट सिद्ध के नाम से भी जानते हैं। बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थल गुफा है जो प्राकृतिक है।
गुफा के पीछे पहाड़ी पर शिखर शैली का नया मंदिर बना हुआ है। वहां भगवान शिव का मंदिर भी है। यहां करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है जिसे भक्तों की सुविधाओं के लिए लगातार खर्च किया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी की गुफा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। 14 मार्च संक्रांति वाले दिन यहां वार्षिक मेला (चाला) प्रारंभ हो रहा है जहां लाखों की संख्या में भक्त लोग आकर बाबा बालक नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
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